बक्सर का युद्ध कब हुआ था ?, युद्ध के कारण, परिणाम, किन के बीच में हुआ, आदि पूरी जानकारी दी सही है | Battle Of Buxar In Hindi
प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी की ताकत पहले से कई गुना बढ़ चुकी थी | अंग्रेजों ने बंगाल के नवाब मीर कासिम को पद से हटा दिया और उनके ससुर मीर जाफर को फिर से बंगाल का नवाब बना दिया | मीर कासिम भागकर अवध चला जाता है और वहां से बक्सर के युद्ध (baksar ka yuddh) की पृष्ठभूमि तैयार होती है |
महत्वपूर्ण बिंदु -
बक्सर के युद्ध की पृष्ठभूमि
- बंगाल का नवाब भागकर अवध में चला गया | अवध के नवाब सुझाव दौला थे |
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से युद्ध करने के लिए बंगाल के नवाब मीर कासिम अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय ने मिलकर संगठन बनाया |
बक्सर का युद्ध | Battle Of Buxar In Hindi
22 अक्टूबर 1764 को हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मुगल, अवध और बंगाल तीनों की संयुक्त सेनाओं के बीच में बक्सर का युद्ध हुआ, जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी ने तीनों संयुक्त सेनाओं को हरा कर बंगाल में शासन स्थापित किया | बक्सर के युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी का नेतृत्व हेक्टर मुनरो ने किया था | बक्सर के युद्ध के बाद इलाहाबाद की संधि की गई | battle of buxar upsc in hindi
इलाहाबाद की संधि
- इलाहाबाद की संधि अगस्त 1765 में रॉबर्ट क्लाइव और अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय के साथ दो अलग-अलग संधि की |
- शुजाउद्दौला के साथ
- इस संधि के तहत इलाहाबाद और कान्हा का क्षेत्र अवध के नवाब से लेकर मुगल सम्राट को सौंप दिया |
- ईस्ट इंडिया कंपनी को 50 लाख की क्षति पूर्ति दी गई |
- शाह आलम द्वितीय के साथ
- शाह आलम द्वितीय को कंपनी के संरक्षण में इलाहाबाद के किले में रखा गया |
- मुगल सम्राट को 26 लाख रुपए वार्षिक भुगतान के बदले में ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल बिहार और उड़ीसा की दीवानी दे दी गई |
- मुगल सम्राट से 53 लाख रुपए विभिन्न कार्य जैसे – सैन्य रक्षा, पुलिस आदि के परिणाम में लिए गए |
- Note:- बक्सर के युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी का नेतृत्व हेक्टर मुनरो ने किया था, लेकिन अवध और मुगल सम्राट से संधि करने के लिए रॉबर्ट क्लाइव को इंग्लैंड से वापस बुलाया गया; अतः इलाहाबाद की संधि रॉबर्ट क्लाइव ने की |
बक्सर के युद्ध का परिणाम और महत्व
- बक्सर का युद्ध बंगाल में अंग्रेजों के लिए निर्णायक युद्ध था, इस युद्ध के बाद बंगाल के नवाब ईस्ट इंडिया कंपनी के कठपुतली मात्र रह गए थे |
- बंगाल के अलावा ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभाव बिहार और उड़ीसा पर भी बढ़ चुका था और उसे यहां पर दीवानी अधिकार प्राप्त हो गए |
- बक्सर के युद्ध के बाद अंग्रेज उत्तर भारत में एक महान शक्ति के दावेदार बन चुके थे |
- 1765 में मीर जाफर की मृत्यु के बाद उसके बेटे नजम-उद-दौला को बंगाल का कठपुतली नवाब बनाया गया |
- बक्सर के युद्ध के बाद बंगाल में अंग्रेजों ने द्वैध शासन की पद्धति को अपनाया |
द्वैध शासन प्रणाली
- द्वैध शासन प्रणाली में बंगाल में कर और राजस्व वसूलने का अधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी के पास था जबकि अन्य सामान्य प्रशासन के कार्य का अधिकार बंगाल के नवाब के पास था | अर्थात ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए बिना किसी जिम्मेदारी के पैसे कमाने की शासन प्रणाली थी |
- द्वैध शासन की शुरुआत 1765 में इलाहाबाद की संधि के बाद हुई, इस कारण से द्वैध शासन का जनक रॉबर्ट क्लाइव को कहा जाता है |
- द्वैध शासन प्रणाली में बंगाल के लोगों का भरपूर शोषण किया गया |
- इस दौरान बंगाल में 1770 के दौरान भीषण अकाल पड़ा जिसमें लगभग बंगाल की एक-तिहाई (1/3) जनसंख्या की मौत हो गई |
- द्वैध शासन प्रणाली का अंत 1772 में वारेन हेस्टिंग के बंगाल के गवर्नर बनने के बाद किया गया |
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बक्सर के युद्ध के महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQ)
बक्सर का युद्ध कब और किसके मध्य हुई थी ?
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बक्सर का युद्ध 22 अक्टूबर 1764 को ईस्ट इंडिया कंपनी और अवध के नवाब शुजाउद्दौला, मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय और बंगाल के नवाब मीर कासिम की संयुक्त सेनाओं से हुआ |
बक्सर के युद्ध में अंग्रेजो का सेनापति कौन था ?
बक्सर के युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी (अंग्रेजों) के सेनापति हेक्टर मुनरो थे | हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में बक्सर के युद्ध को जीतने के बाद रोबर्ट क्लाइव ने इलाहाबाद की संधि की |
इलाहाबाद की संधि कब हुई थी ?
इलाहाबाद की संधि अगस्त 1765 में रॉबर्ट क्लाइव और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय और अवध के नवाब शुजाउद्दौला दोनों के बीच में हुई थी |
बंगाल में द्वैध शासन कब से कब तक चला ?
बक्सर के युद्ध के बाद बंगाल में 1765 से 1772 तक 7 वर्ष तक द्वैध शासन बंगाल में लागू रहा |
बंगाल में द्वैध शासन क्या है ?
बंगाल में शासन की दोहरी प्रणाली जिसमें राजस्व एकत्रित का अधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी के पास था और सामान्य प्रशासन का अधिकार बंगाल के नवाब के पास था, इसे ही द्वैध शासन प्रणाली कहते हैं |
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